नई दिल्ली: हर वर्ष की तरह इस बार भी उत्तराखंड लोक भाषा साहित्य मंच दिल्ली-एनसीआर में गढ़वाली, कुमाऊंनी भाषाओं की ग्रीष्मकालीन कक्षाओं के जरिये क्षेत्रीय भाषाएं सीखने का अवसर दे रहा है। इसके पहले चरण में रविवार को न्यू अशोक नगर स्थित डीपीएमआई सभागार में टीचर्स की वर्कशॉप कराई गई, जिसमें कक्षाओं के संचालन और अध्यापन संबंधी जानकारी दी गई। उत्तराखंड लोक भाषा साहित्य मंच के संयोजक दिनेश ध्यानी और संरक्षक विनोद बछेती हैं। दिनेश ध्यानी ने वताया कि लोकभाषा की ग्रीष्मकालीन कक्षाएं 11 मई से 10 अगस्त तक चलेंगी। पिछले साल इन कक्षाओं के लिए 34 सेंटर थे, जो इस साल बढ़कर 45 से ऊपर हो गए हैं। इस बार दिल्ली के अलावा एनसीआर में फरीदाबाद, गुड़गांव, गाजियाबाद और दिल्ली से बाहर देहरादून, श्रीनगर में भी कक्षाएं लगेंगी। इतना ही नहीं, इस बार देश के बाहर इंग्लैंड के पांच शहरों में भी हर रविवार को एम एस नेगी के सहयोग से गढ़वाली, कुमाऊंनी भाषा की कक्षाएं चलेंगी।
ध्यानी ने बताया कि उत्तराखंड के अल्मोड़ा में भी इस बार टीचर कृपाल सिंह शीला की मदद से कमाऊंनी की कक्षाएं लगाने की तैयारी है। जिन लोगों को गढ़वाली कुमाऊंनी सीखनी है वो इन कक्षाओं में आ सकते हैं। उम्र का कोई बंधन नहीं है। उन्होंने बताया कि हमारे पास विगत वर्षों में ऐसे भी बच्चे भाषा सीखने आए जो ओडिशा, बिहार के थे। इसी तरह उत्तराखंड के श्रीनगर में पीएचडी कर रहे वो छात्र छात्राएं भी गढ़वाली सीखने में रुचि ले रहे हैं, जो मूल रूप से उत्तराखंड के नहीं हैं। हमारे पास गढ़वाली और कुमाऊंनी भाषाओं का पाठ्यक्रम है और इन्हे पढ़ने वाले भी इन्ही भाषाओं के जानकार, साहित्यकार हैं। कक्षाओं के आयोजन में जयपाल सिंह रावत, रमेश चन्द्र घिल्डियाल सरस, अनिल कुमार पंत, दर्शन सिंह रावत, रेखा चौहान, दयाल नेगी विशेष योगदान दे रहे है। ग्रीष्मकालीन कक्षाओं की संचालन समिति के प्रबंधक दयाल सिंह नेगी ने वताया कि ये कक्षाएं निशुल्क रहती हैं। इनमें बैग, कॉपी, पेन तो दिए ही जाते हैं, जलपान की व्यवस्था भी संबंधित केंद्रों की ओर से की जाती है।