रांची:
झारखंड में मानव तस्करी बड़ी समस्या है. भोले भाले ग्रामीणों को नौकरी दिलाने का लालच देकर मानव तस्कर उन्हें बड़े शहरों में बेच डालते हैं. हर साल हजारों आदिवासी लड़के और लड़कियों, खास तौर पर नाबालिग लड़कियों की तस्करी दिल्ली और उसके बाहर की जाती है. चंद पैसों के खातिर इन बच्चियों के सपने और उनके जीने का हक छीन लिया जाता है. एनडीटीवी की इस खास रिपोर्ट में जानते हैं कि पीड़ित लड़कियां क्या सोचती हैं और कैसे वो तस्करी का शिकार बन जाती हैं.
खूंटी जिले के कर्रा की रहने वाली अनीता (बदला हुआ नाम) को महज 13 साल की उम्र में उनकी बुआ काम का प्रलोभन देकर दिल्ली लेकर चली गई थी और उसे दिल्ली के एक घर में बच्चों को संभालने के काम में लगा दिया गया था. दीया सेवा नामक गैर सरकारी संस्था ने दुश्वारियों से बचा तो लिया लेकिन भविष्य क्या होगा, इस मासूम को पता नहीं है.
वह कहती है कि मेरी उम्र 13 साल थी, जब मुझे काम दिलाने के नाम पर लेकर गए थे और जो लेकर गई थी वो मेरी बुआ लगती है. वहां पर मुझे बच्चा खिलाने का काम दिया गया. अब मैं पढ़ना चाहती हूं और कुछ बनना चाहती हूं.
कुछ वापस लौटती हैं तो कुछ…
झारखंड की यह पहली लड़की नहीं है, जिसे काम के बहाने उसके अपने ही रिश्तेदार या करीबी दिल्ली जैसे शहर लेकर गए हों और उसे इस तरह से प्रताड़ित नहीं किया गया हो. इस राज्य की सैकड़ों लड़कियां हर साल बड़े सपने लेकर देश की राजधानी में जाती हैं. कुछ लड़कियां प्रताड़ित होकर वापस लौट आती हैं तो कुछ की डेड बॉडी भी नहीं मिलती. कई तो हमेशा के लिए लापता हो जाती हैं.
इसे राज्य की गरीबी कहें या बेरोजगारी या फिर जागरूकता का अभाव जिसकी वजह से आसानी से यहां की आदिवासी लड़कियां मानव तस्करी का शिकार हो जाती हैं.
क्या कहती हैं पीड़ित लड़कियां?
केस 1
ऐसी ही एक पीड़ित लड़की ने कहा कि दीदी बोली थी कि काम पर लगा देंगे, दो दिनों तक ऑफिस में रखा, फिर काम पर लगा दिया. पापा ने केस किया तो फिर वापस लेकर आए.
केस 2
एक अन्य लड़की ने अपनी आपबीती सुनाते हुए कहा कि हम लोग गरीब परिवार से है. दो महीने के लिए चलो लॉकडाउन चल रहा था, वो मुझे रांची लेकर आ गई और मुझे एक व्यक्ति के साथ दिल्ली भेज दिया और वहां से वो किसी और के साथ भेज दिया, मुझे दो महीने बाद पता चला कि उसने मुझे बेच दिया है, तब मैंने अपने पापा को किसी तरह फोन कर बताया कि मुझे यहां बेच दिया गया है, तब पापा ने केस किया और मुझे वहां से छुड़ाकर लाया गया. अभी मैं पढ़ाई कर रही हूं और कुछ बनना चाहती हूं.
क्या कहते हैं सामाजिक कार्यकर्ता?
झारखंड में मानव तस्करी के खिलाफ अभियान चलाने वाली लक्ष्मी बाखला कहती हैं कि मानव तस्करी झारखंड में एक बड़ी समस्या है. भोले भाले ग्रामीणों को नौकरी दिलाने का लालच देकर मानव तस्कर उन्हें बड़े शहरों में बेच डालते हैं इतना ही नहीं जो लोग लड़कियां को लेकर जाते हैं, उसे सबसे पहले हवस का शिकार बनाते है जिससे वो मजबूर हो जाए और भाग नहीं पाए.
बाखला ने कहा कि सच्चाई ये है कि हजारों बच्चियां गायब हैं और बहुत कम एक-दो परसेंट मामले ही थाने तक पहुंचते हैं. इसका एक कारण शिक्षा का अभाव है, यहां से लड़कियां जाती हैं और उसे घर के काम में लगाया जाता है. साथ ही उसे हवस का भी शिकार होना पड़ता है.
छीन रहे खुलकर जीने का हक
बीते सालों में बड़ी संख्या में झारखंड के बच्चे-बच्चियों को देश के विभिन्न महानगरों में बेच दिया गया है. इसमें सबसे अधिक दिल्ली में बेचा गया है. यहां इनके साथ सालों तक यौन हिंसा होती है. बच्चों से घरेलू काम भी लिए जाते हैं, बदले में सिवाय खाने के इन्हें कुछ नहीं मिलता.
झारखंड के दलाल इन्हें दिल्ली की विभिन्न प्लेसमेंट एजेंसी के माध्यम से बेच रहे हैं. जीने का अधिकार हर किसी को है, लेकिन आज झारखंड क्या और क्या भारत, पूरी दुनिया में कुछ ऐसा तबका चंद पैसों के खातिर लोगों को शिकार बनाकर उनसे उनके सपने और उनके जीने का हक छीन रहे हैं. झूठे सपनों की आड़ में आदमी इंसानी भीड़ में गुम हो रहा है. आज गुलामी का ये घिनौना मंजर हर कहीं है. जिसे पूरी दुनिया आज ह्यूमन ट्रैफिकिंग या मानव तस्करी के नाम से जानती है.